Nahin mohi gyaan-buddhi hai tan mein, sab jaanat ho apne man mein;Roop chaturbhuj karke dhaaran, kasht mor ab karahu nivaaran॥
Kahi prakaar main karun badaai, gyaan buddhi mohin nahin adhikaai;Ramdas ab kahai pukaari, karo door tum vipati hamaari॥
॥ Doha (Ant) ॥
Traahi traahi dukh haarini, haro begi sab traas;Jayati jayati jai Lakshmi, karo shatrun ka naash॥Ramdas dhari dhyaan nit, vinay karat kar jor;Maatu Lakshmi daas par, karahu daya ki kor॥
Meaning / भावार्थ
ENInvocation to Lakshmi as the universal support and giver of wisdom, prosperity and relief from suffering; regular recitation is said to bring peace and abundance.
HIमाँ लक्ष्मी से ज्ञान–बुद्धि, सुख–समृद्धि और संकट-नाश की विनय; नियमित पाठ से शांति और ऐश्वर्य प्राप्त होने का फलश्रुति-वर्णन।
॥ दोहा ॥
मातु लक्ष्मी करि कृपा करो हृदय में वास।मनोकामना सिद्ध कर पुरवहु मेरी आस॥सिंधु सुता विष्णुप्रिये नत शिर बारंबार।ऋद्धि सिद्धि मंगलप्रदे नत शिर बारंबार॥
॥ सोरठा ॥
यही मोर अरदास, हाथ जोड़ विनती करूं।सब विधि करौ सुवास, जय जननि जगदंबिका॥
॥ चौपाई ॥
सिन्धु सुता मैं सुमिरौं तोही। ज्ञान बुद्धि विद्या दो मोहि॥तुम समान नहिं कोई उपकारी। सब विधि पुरबहु आस हमारी॥
जै जै जगत जननि जगदम्बा। सबके तुमही हो स्वलम्बा॥तुम ही हो घट घट के वासी। विनती यही हमारी खासी॥
जग जननी जय सिन्धु कुमारी। दीनन की तुम हो हितकारी॥विनवौं नित्य तुम्हिं महारानी। कृपा करौ जग जननि भवानी॥
केहि विधि स्तुति करौं तिहारी। सुधि लीजै अपराध बिसारी॥कृपा दृष्टि चितवो मम ओरी। जगत जननि विनती सुन मोरी॥
ज्ञान बुद्धि जय सुख की दाता। संकट हरो हमारी माता॥क्षीर सिंधु जब विष्णु मथायो। चौदह रत्न सिंधु में पायो॥
चौदह रत्न में तुम सुखरासी। सेवा कियो प्रभुहिं बनि दासी॥जब जब जन्म जहां प्रभु लीन्हा। रूप बदल तहं सेवा कीन्हा॥
स्वयं विष्णु जब नर तनु धारा। लीन्हेउ अवधपुरी अवतारा॥तब तुम प्रकट जनकपुर माहीं। सेवा कियो हृदय पुलकाहीं॥
अपनायो तोहि अन्तर्यामी। विश्व विदित त्रिभुवन की स्वामी॥तुम सब प्रबल शक्ति नहिं आनी। कहं तक महिमा कहौं बखानी॥
मन क्रम वचन करै सेवकाई। मन-इच्छित वांछित फल पाई॥तजि छल कपट और चतुराई। पूजहिं विविध भांति मन लाई॥
और हाल मैं कहौं बुझाई। जो यह पाठ करै मन लाई॥ताको कोई कष्ट न होई। मन इच्छित फल पावै सोई॥
त्राहि-त्राहि जय दुःख निवारिणी। त्रिविध ताप भव बंधन हारिणि॥जो यह चालीसा पढ़े और पढ़ावै। इसे ध्यान लगाकर सुने सुनावै॥
ताको कोई न रोग सतावै। पुत्र आदि धन सम्पत्ति पावै॥पुत्रहीन और सम्पत्ति हीना। अन्धा बधिर कोढ़ी अति दीना॥
विप्र बुलाय कै पाठ करावै। शंका दिल में कभी न लावै॥पाठ करावै दिन चालीसा। ता पर कृपा करैं गौरीसा॥
सुख सम्पत्ति बहुत-सी पावै। कमी नहीं काहू की आवै॥बारह मास करै जो पूजा। तेहि सम धन्य और नहिं दूजा॥
प्रतिदिन पाठ करै मन माहीं। उन सम कोई जग में नाहिं॥बहु विधि क्या मैं करौं बड़ाई। लेय परीक्षा ध्यान लगाई॥
करि विश्वास करैं व्रत नेमा। होय सिद्ध उपजै उर प्रेमा॥जय जय जय लक्ष्मी महारानी। सब में व्यापित जो गुण खानी॥
नहिं मोहिं ज्ञान बुद्धि है तन में। सब जानत हो अपने मन में॥रूप चतुर्भुज करके धारण। कष्ट मोर अब करहु निवारण॥
कहि प्रकार मैं करौं बड़ाई। ज्ञान बुद्धि मोहिं नहिं अधिकाई॥रामदास अब कहाई पुकारी। करो दूर तुम विपति हमारी॥
॥ दोहा (अंत) ॥
त्राहि त्राहि दुःख हारिणी हरो बेगि सब त्रास।जयति जयति जय लक्ष्मी करो शत्रुन का नाश॥रामदास धरि ध्यान नित विनय करत कर जोर।मातु लक्ष्मी दास पर करहु दया की कोर॥
॥ आरती — ओम जय लक्ष्मी माता ॥
ओम जय लक्ष्मी माता, मैया जय लक्ष्मी माता।तुमको निशिदिन सेवत, हरि विष्णु विधाता॥उमा, रमा, ब्रह्माणी, तुम ही जग-माता।सूर्य-चंद्रमा ध्यावत, नारद ऋषि गाता॥दुर्गा रूप निरंजनी, सुख सम्पत्ति दाता।जो कोई तुमको ध्याता, ऋद्धि-सिद्धि धन पाता॥तुम पाताल-निवासिनि, तुम ही शुभदाता।कर्म-प्रभाव-प्रकाशिनी, भवनिधि की त्राता॥जिस घर में तुम रहतीं, सब सद्गुण आता।सब सम्भव हो जाता, मन नहीं घबराता॥तुम बिन यज्ञ न होते, वस्त्र न कोई पाता।खान-पान का वैभव, सब तुमसे आता॥शुभ-गुण मंदिर सुंदर, क्षीरोदधि-जाता।रत्न चतुर्दश तुम बिन, कोई नहीं पाता॥महालक्ष्मीजी की आरती, जो कोई जन गाता।उर आनन्द समाता, पाप उतर जाता॥
Meaning / भावार्थ
ENClassic hymn praising Lakshmi as the source of prosperity, virtue and protection; singing the aarti is believed to bring joy and remove sins.
HIमाँ लक्ष्मी को समृद्धि, सद्गुण और रक्षा की अधिष्ठात्री मानकर कृतज्ञता-स्तुति; आरती-गान से आनंद और पाप-क्षय का वर्णन।
॥ बीज मन्त्र ॥
ॐ श्रीं ह्रीं श्रीं महालक्ष्म्यै नमः ॥
Transliteration (Hinglish)
Om Shreem Hreem Shreem Mahalakshmyai Namah.
॥ लक्ष्मी गायत्री मन्त्र ॥
ॐ श्री महालक्ष्म्यै च विद्महे विष्णु पत्न्यै च धीमहि।तन्नो लक्ष्मी प्रचोदयात् ॐ॥
Transliteration (Hinglish)
Om Shree Mahalakshmyai Cha Vidmahe, Vishnu Patnyai Cha Dheemahi,Tanno Lakshmi Prachodayat Om.
ENBeej invokes Lakshmi’s grace; Gayatri meditates on Vishnu’s consort to inspire our intellect; the stuti salutes Mahalakshmi seated on Sri Pitha with conch, discus, and mace.
HIबीज मन्त्र कृपा-आह्वान है; गायत्री में विष्णुपत्नी लक्ष्मी पर ध्यान कर प्रेरणा का निवेदन; स्तुति में श्रीपीठ पर विराजमान महालक्ष्मी को प्रणाम।
लक्ष्मीर्हरिप्रिया पद्मा एतन्नामत्रयं स्मरन्।नामत्रयमिदं जप्त्वा स याति परमां श्रियम्॥
यः पठेत् स च धर्मात्मा सर्वान् कामानवाप्नुयात्॥
Meaning / भावार्थ
EN“Divine armour” invoking Lakshmi and allied forms to protect each limb; credited to the Brahma Purana (Indra-krita). Recitation is said to grant victory, prosperity and fearlessness.
HIशरीर के प्रत्येक अंग पर लक्ष्मी और सम्बद्ध शक्तियों का संरक्षण-विनियोग; (ब्रह्मपुराण, इन्द्रकृत) — पाठ से विजय, समृद्धि और निर्भयता की प्राप्ति कही गयी है।